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Thursday, August 26, 2010

ਧਰਤੀ ਲਈ ਚੁੰਨੀ--धरा ने ली चुनरी















ਮੇਰੀ ਧਰਤੀ 
ਮੇਰੇ ਵਰਗੀ
ਬਦਲ-ਬਦਲ ਕੇ
ਲੈਂਦੀ ਚੁੰਨੀ
ਕਦੇ ਓਹ ਲੈਂਦੀ
ਰੰ-ਬਿਰੰਗੀ
ਕਦੇ ਲੈ ਲੈਂਦੀ
ਹਰੀ ਚੁੰਨੀ
ਜਦ ਪੈ ਜਾਂਦੀ
ਬਰਫ਼ ਹਰ ਪਾਸੇ
ਚੁੰਨੀ ਲੈਂਦੀ......
ਚਾਂਦੀ-ਰੰਗੀ
ਮੇਰੀ ਧਰਤੀ
ਮੇਰੇ ਵਰਗੀ
ਰੁੱਤ ਬਦਲੇ 
ਬਦਲੇ ਚੁੰਨੀ

ਸੁਪ੍ਰੀਤ ਕੌਰ ਸੰਧੂ

पड़ी रात में बर्फ़
धरा ने हरी तजकर
ओढ़ी चिट्टी चादर........सुप्रीत
(अनुवाद ...रामेश्रर काम्बोज 'हिमांशु')


मेरी धरती
मेरे जैसी
बदल-बदल कर
लेती चुनरी
कभी वो लेती
रंग-बिरंगी
कभी ले लेती
हरी चुनरी
चारों ओर
जब बर्फ़ पड़े
चुनरी  लेती 
चांदी जैसी 
मेरी धरती
मेरे जैसी
रुत बदले
बदले चुनरी    
सुप्रीत संधु
(अनुवाद....हरदीप संधु)
   

     

5 comments:

  1. सुप्रीत का प्रकृति-प्रेम कविता की हर पंक्ति को चित्र के रूप में पेश करता है अच्छी कविता अगर बिम्ब में संजोई गैइ हो तो उसकी सुन्दरता दुगुनी हो जाती है । दिल खुश हो गया बेटी । और हरदीप जी का अनुवाद तो बेहतर नहीं बल्कि बेहतरीन है। मेरी दिली बधाइयाँ

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  2. बहुत प्रभावशाली चित्रण !

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  3. Bahut thore shabdan vich bahut hee sunder te dil khichven shabad chiter pesh kite han.....shabash.

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  4. Hello Supreet!!
    firstly congrats for having ur own blog..
    i have read all ur poems...ur choice of words is so cute and lovely...wanna read it again and again...
    love u
    Harman Massi

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  5. thankyou to all for reading my poem...but more to writing these lovely comments to me:D

    :)THANKS!!!!!!! :)

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