ਅਸੀਮ ਆਸਮਾਨ ..... the sky is limitless
where endless thoughts are captured on a piece of paper.................... ਮਨ ਦੇ ਅਸੀਮਿਤ ਖਿਆਲਾਂ ਨੂੰ ਕਲਮ-ਬੱਧ ਕਰ ਕੇ ਕਾਗਜ਼ 'ਤੇ ਉਤਾਰਿਆ....................
Monday, July 18, 2011
Monday, May 9, 2011
Wednesday, April 13, 2011
ਵਿਸਾਖੀ....... वैशाखी .. ...
ਇਹ ਕਵਿਤਾ ਮੈਂ ਪਿਛਲੇ ਸਾਲ ( ੨੦੧੦) ਨੂੰ ਵਿਸਾਖੀ 'ਤੇ ਲਿਖੀ ਸੀ ....
ਵਿਸਾਖੀ ਮੇਲਾ
ਚੇਤ ਤੋਂ ਬਾਦ
ਆਇਆ ਵਿਸਾਖ
ਲਿਆਇਆ ਵਿਸਾਖੀ ਮੇਲਾ
ਗੱਭਰੂ ਤੇ ਮੁਟਿਆਰਾਂ
ਨੱਚਣ ਤੇ ਗਾਉਣ
ਬੱਚੇ ਖਾਣ ਜਲੇਬੀਆਂ
ਰੌਣਕ ਲੱਗੇ
ਹਰੇਕ ਸਾਲ
ਇਸ ਵਿਸਾਖੀ ਮੇਲੇ ‘ਤੇ
ਹਾਂ ਇਸ ਵਿਸਾਖੀ ਮੇਲੇ ‘ਤੇ
ਸੁਪ੍ਰੀਤ ਸੰਧੂ (ਉਮਰ 12 ਸਾਲ)
ਜਮਾਤ - ਸੱਤਵੀਂ
यह कविता मैंने पिछले वर्ष वैशाखी पर्व पर लिखी थी .....ਜਮਾਤ - ਸੱਤਵੀਂ
वैशाखी मेला
चेत्र के बाद
आया वैशाख
लेकर आया
वैशाखी मेला
सभी मिलकर
नाचें गाएँ
बच्चे खाएँ
जलेबियाँ .......
जलेबियाँ .......
रौनक लगे
हर वर्ष
इस वैशाखी मेले पर
हाँ ...इस वैशाखी मेले पर !
सुप्रीत कौर सन्धु
कक्षा - सातवीं
अनुवाद : हरदीप सन्धु
Tuesday, April 5, 2011
ਝੁਰੜੀਆਂ.....झुर्रियाँ
ਬੁੱਢਾ ਬੋਹੜ
ਝੁਰੜੀ ਵਾਲ਼ਾ ਬਾਬਾ
ਇੱਕੋ ਜਿਹੇ ਹੀ !
ਸੁਪ੍ਰੀਤ ਕੌਰ ਸੰਧੂ
(ਜਮਾਤ ਸਤਵੀਂ)
बूढ़े पेड़ से
बाबा की ये झुर्रियाँ
मिलती लगें !
सुप्रीत कौर सन्धु
(आयु १२ वर्ष )
अनुवाद : हरदीप सन्धु
Saturday, March 19, 2011
Spring
Spring
People moving
Tadpole growing
Hedgehogs waking
Ice is breaking
Squirrels playing
foals neighing
Lambs bleating
caterpillars eating
Pretty Flowers
Wind and showers
Blossom falling
Birds calling
Washing drying
Butterflies flying
Bees are humming
Spring is comming !
Supreet Kaur Sandhu
Class 7th
Penrith High School
Sydney
वसंत
लोग सुधारें बाग बगीचे
मेंडक पैदा होते
जंगली चूहे दौड़े
हिम खण्ड पिंघले
गिलहरी लगी खेलने
बछेरे हिनहिनाने लगे
मेमने मिमियाए
सुन्दर फूल खिले
हवा बारिश मिले
बाग में फूल महकने लगे
डाली पर पक्षी चह्कने लगे
कपड़े शीघ्र शूख जाएँ
तितलियों ने पर दिखाए
मधु मक्खी भिन-भिनाई
देखो वसंत-बहार आई !
सुप्रीत
कक्षा ७
अनुवाद : हरदीप
ਬਸੰਤ
ਲੋਕ ਬਗੀਚੀ ਸੁਆਰਦੇ
ਡੱਡੂ ਪੈਦਾ ਹੋਏ
ਜੰਗਲੀ ਚੂਹੇ ਭੱਜਦੇ
ਬਰਫ ਦੇ ਤੋਦੇ ਟੁੱਟਦੇ
ਖੇਡਣ ਕਾਟੋ ਲੱਗੀ
ਵਛੇਰੇ ਹਿਣਕਦੇ
ਲੇਲੇ ਮਿਮਿਆਉਂਦੇ
ਸੋਹਣੇ ਫੁੱਲ ਖਿੜੇ
ਹਵਾ -ਮੀਂਹ ਮਿਲੇ
ਬਾਗੀਂ ਫੁੱਲ ਮਹਿਕਣ
ਡਾਲੀ ਪੰਛੀ ਚਹਿਕਣ
ਕੱਪੜੇ ਝੱਟ ਸੁਕਾਏ
ਤਿੱਤਲੀਆਂ ਪਰ ਵਿਖਾਏ
ਸ਼ਹਿਦ ਦੀ ਮੱਖੀ ਭਿੰਨ -ਭਿੰਨਾਈ
ਵੇਖੋ ਬਸੰਤ -ਬਹਾਰ ਆਈ !
ਸੁਪ੍ਰੀਤ
ਜਮਾਤ ੭
ਅਨੁਵਾਦ : ਹਰਦੀਪ
Wednesday, March 2, 2011
Today is Supreet's Birthday
Today is 2 March 2011....it's a very special day for Supreet.
It's her Birthday. She is turning 12 today.
What a great pleasure it is again to wish her a very happy birthday!
She is getting a very special gift........
Her first published Poetry Book ...." The sky is limitless"
This book is published in 2011 by selecting 26 poems . This book is in three languages- English, Punjabi and Hindi. The poems are written in English and translated in Hindi and Punjabi by me (Hardeep Sandhu ). The book has been published with the assistance of Rameshwar Kamboj Himanshu - editor, Laghukatha.com and Hindi Haiku.
खुशी के आँसू छलक पडे !
It's her Birthday. She is turning 12 today.
What a great pleasure it is again to wish her a very happy birthday!
She is getting a very special gift........
Her first published Poetry Book ...." The sky is limitless"
Tears of joy welled in her eyes when Supreet got this book in her hands this morning.
About the book:
For Supreet's school assignment - a Personal Interest Project - students of grade 6 have to choose any thing of their personal interest. Supreet had chosen to write poems. She wrote about 50 short & long poems and haikus altogether. Her poems are about the nature, season, pollution, human relations and few poems are based on her imagination.This book is published in 2011 by selecting 26 poems . This book is in three languages- English, Punjabi and Hindi. The poems are written in English and translated in Hindi and Punjabi by me (Hardeep Sandhu ). The book has been published with the assistance of Rameshwar Kamboj Himanshu - editor, Laghukatha.com and Hindi Haiku.
लेखिका के बारे में जानकारी...
सुप्रीत का जन्म पंजाब के बरनाला जिले में २ मार्च १९९९ को हुआ ! जब वह चार वर्ष की थी ,तब सिडनी आ गई !उस समय वह के जी में पढ़ती थी! अब सुप्रीत सातवीं कक्षा की छात्रा है!
सुप्रीत ने घर में ही पंजाबी व हिन्दी भाषा पढ़नी सीखी !बच्चों की हाइकु पुस्तक ' हरे-हरे तारे ' ने सुप्रीत को बहुत प्रभावित किया !मम्मा ने उस की लेखनी को तराशा !पापा ने हलाशेरी दी !बडे भइया ने बहुत बढ़िया कहकर उत्साह बढ़ाया!
आज जब सुप्रीत को मैने यह पुस्तक दी ....उस की आँखों में खुशी के आँसू छलक पडे !
With love
Hardeep K Sandhu
Tuesday, February 22, 2011
Supreet's in Reader's Club Bulletin
पाठक मंच बुलेटिन के जनवरी 2011 के अंक में सुप्रीत की कविता छपी है । पाठक मंच बुलेटिन मासिक मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार के अन्तर्गत कार्यरत 'नेशनल बुक ट्रस्ट , इण्डिया' की पत्रिका है । यह पत्रिका द्विभाषी ( हिन्दी और अंग्रेज़ी) है और पिछले 15 वर्षों से प्रकाशित हो रही है । यह भारत के लगभग 37 हज़ार विद्यालयों में भेजी जाती है । इस पत्रिकामें बच्चों की रचनाएँ भी छापी जाती हैं । यही नहीं इस पत्रिका के अप्रैल और नवम्बर के अंक में केवल बच्चों की रचनाएँ छापी जाती हैं । इसके सम्पादक श्री मानस रंजन महापात्र और सहायक सम्पादक श्री द्विजेन्द्र कुमार है
Hardeep K Sandhu
Wednesday, January 5, 2011
Sunshine
1.
Sparkling rays of golden cheer
Fill the air throughout the year.
When you find it, you will hear
The sound of laughing somewhere near.
Supreet Sandhu ( Grade 7)
ਧੁੱਪ
ਲਿਸ਼ਕਦੀਆਂ ਕਿਰਨਾਂ
ਸੁਨਹਿਰੀ ਹਾਸੇ ਦੀਆਂ
ਹਰ ਪਲ ਸਾਡੇ
ਭਰਦੀਆਂ ਵਿਹੜੇ
ਕਰੋਗੇ ਜਦ
ਲੱਭਣ ਦਾ ਹੀਲਾ
ਜ਼ਰੂਰ ਸੁਣੋਗੇ
ਹਾਸਿਆਂ ਦੀ ਛਣਕਾਰ
ਆਪਣੇ ਨੇੜੇ-ਤੇੜੇ
ਸੁਪ੍ਰੀਤ ਕੌਰ ਸੰਧ ( ਕਲਾਸ- ਸੱਤਵੀਂ)
ਅਨੁਵਾਦ: ਹਰਦੀਪ ਸੰਧੂ
धूप
चमकती किरणें
सुनहरी हँसी की
हर पल अपने
भरती आँगन
करोगे जब
ढूँढने की कोशिश
तभी सुनोगे
हँसी की छनकार
अपने ही पास
सुप्रीत सन्धु (कक्षा- सातवीं)
अनुवाद : हरदीप सन्धु
Saturday, January 1, 2011
Happy New Year - 2011
ਨਵਾਂ ਹੈ ਸਾਲ
ਹੋਰ ਨੇੜੇ ਆਏ ਨੇ
ਨਵੀਨ ਮੌਕੇ
ਸੁਪ੍ਰੀਤ
नया है वर्ष
और करीब आए
नवीन पल
सुप्रीत
अनुवाद : हरदीप सन्धु
Sunday, November 14, 2010
Life of an orphan .....ਯਤੀਮ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ......यतीम की ज़िन्दगी ....
Life is so free, yet so restricted,
From all happiness I am evicted.
The earth is so full, yet so much more empty,
I sit in silence as all eyes watch me.
The world plays together, yet I am so alone,
We all have shelter but I have no home.
Everyone is cared for, yet I am so neglected,
They make fun of me, no sadness is detected.
Everyone is happy, yet I am so sad,
I wonder why they treat me so bad.
We are all well educated, yet I go to no school,
They are mean because they think it’s cool.
Everyone is eating, yet I have no food,
I know they laugh, but why be so rude,
Everyone matters, yet I am called names,
They will call me a tramp, I know, they are all the same,
They hit me, hurt me, yet I feel no pain,
I know tomorrow they will do it again.
Outside on sunny days they'll drink their sugared tea,
But no one knows that the sun will never shine for me.
Supreet Kaur Sandhu ( Grade 6th)
Caddies Creek Public School
"ਯਤੀਮ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ"
ਚਾਹੇ ਆਜ਼ਦ ਹੈ ਜ਼ਿੰਦਗੀ
ਫਿਰ ਵੀ ਬੰਦਸ਼ਾਂ ਨੇ
ਕੀਤਾ ਮੈਨੂੰ ਬੇਦਖਲ
ਸਾਰੀਆਂ ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਤੋਂ ਏਸ ਨੇ
ਧਰਤੀ ਚਾਹੇ ਭਾਗਾਂ ਭਰੀ
ਫਿਰ ਵੀ ਹੈ ਖਲਾਅ
ਤੱਕਣ ਮੈਨੂੰ ਅੱਖੀਆਂ
ਮੈਂ ਬੈਠਾ ਜਦੋਂ ਚੁੱਪ-ਚਾਪ
ਖ਼ਲਕਤ ਸਾਰੀ ਖੇਡੇ ‘ਕੱਠੀ
ਮੈਂ ਬੈਠਾ ਹਾਂ ਇੱਕਲਾ
ਸਾਰਿਆਂ ਕੋਲ਼ ਛੱਤ ਹੈਗੀ
ਮੇਰਾ ਕੋਈ ਨਾ ਆਸਰਾ
ਹਰ ਇੱਕ ਦੀ ਹੁੰਦੀ ਦੇਖਭਾਲ਼
ਮੇਰਾ ਰੱਖਦਾ ਨਾ ਕੋਈ ਖਿਆਲ
ਉਡਾਉਂਦੇ ਓਹ ਮੇਰੀ ਖਿਲੀ
ਮੇਰੀ ਉਸਾਸੀ ਨਾ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਦਿਖੀ
ਹਰ ਜਾਣਾ ਖੁਸ਼ ਹੈ
ਪਰ ਉਦਾਸ ਹਾਂ ਮੈਂ
ਕਿਉਂ ਓਹ ਬੁਰਾ ਤੱਕਣ ਮੇਰਾ
ਨਾ ਸਮਝਿਆ ਮੈਂ
ਸਾਰੇ ਬਹੁਤ ਪੜ੍ਹ-ਲਿਖੇ
ਮੈਂ ਨਾ ਕੁਝ ਪੜ੍ਹਿਆ
ਓਹ ਸਾਰੇ ਬਹੁਤ ਖੁਦਗਰਜ਼
ਕਹਿਣ ਆਪੇ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ
ਸਾਰੇ ਭਰ ਪੇਟ ਖਾਵਣ
ਮੇਰੇ ਲਈ ਕੁਝ ਨਾ ਬਚਿਆ
ਮੈਨੂੰ ਪਤਾ ਓਹ ਹੱਸਣ ਮੇਰੇ ‘ਤੇ
ਕਿਉਂ ਮੇਰੇ ਨਾਲ਼ ਓਹ ਐਨੇ ਰੁੱਖੇ ਆ
ਹੁੰਦੀ ਹਰ ਇੱਕ ਦੀ ਹੋਂਦ ਵੱਖਰੀ
ਪਰ ਮੇਰੀ ਕੋਈ ਪਛਾਣ ਨਹੀਂ
ਓਹ ਕਹਿੰਦੇ ਮੈਂ ਹਾਂ ਇੱਕ ਅਵਾਰਾਗਰਦ
ਮੇਰਾ ਨਾ ਕੋਈ ਹਮਦਰਦ
ਓਹ ਦੁੱਖ ਦਿੰਦੇ
ਮਾਰਦੇ ਮੇਰੇ ਠੋਕਰਾਂ
ਪਰ ਨਾ ਜਾਣੇ ਮੈਂ....
ਕਿਓਂ ਨਾ ਕੋਈ ਦਰਦ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਾਂ
ਮੈਨੂੰ ਹੈ ਪਤਾ....
ਓਨ੍ਹਾਂ ਕੱਲ ਨੂੰ ਫੇਰ ਅਜਿਹਾ ਹੀ ਕਰਨਾ
ਬਾਹਰ ਕੋਸੀ ਧੁੱਪ ‘ਚ
ਓਹ ਲੈਣਗੇ ਚਾਹ ਦੀਆਂ ਚੁਸਕੀਆਂ
ਪਰ ਕੋਈ ਨਾ ਜਾਣੇ....
ਇਹ ਚਮਕਦਾ ਸੂਰਜ
ਮੇਰਾ ਕਦੇ ਵੀ ਨਾ ਬਣਿਆ !!!!
ਸੁਪ੍ਰੀਤ ਕੌਰ ਸੰਧੂ ( ਜਮਾਤ ਛੇਵੀਂ)
ਅਨੁਵਾਦ : ਹਰਦੀਪ ਕੌਰ ਸੰਧੂ
"यतीम की ज़िन्दगी "
चाहे आज़ाद है ज़िन्दगी
फिर भी बन्धन हैं
किया मुझे बेदख़ल
सभी खुशियों से इसने
धरती कितनी भी हो चाहे भाग्यशाली
फिर भी लगता सूना-सूना
देखती हैं मुझे सब आँखें
जब मैं बैठा चुपचाप
दुनिया सारी खेले एक साथ
मैं बैठा हूँ अकेला
सभी के पास है छत
मेरा कोई न आसरा
हर एक की होती देखभाल
मेरा न रखता कोई ख्याल
उड़ाते वो हैं मेरा मज़ाक
मेरी उदासी कोई न देखता
सभी हैं खुश
परन्तु उदास हूँ मैं
क्यों वो मेरा बुरा चाहते
यही समझ न पाया मैं
सभी बहुत पढ़े- लिखे
मैं न कुछ भी पढ़ा
वो बहुत ही खुदगर्ज़
समझते हम हैं बहुत बढ़िया
सभी भरपेट खाते
मेरे लिए कुछ भी न बचा
मुझे पता वो हँसते हैं मुझ पर
क्यों वो मेरे से हैं खफा
हर एक की होती अपनी हस्ती
मेरी कोई पहचान नहीं
वो कहते -मैं हूँ अवारागर्द
मेरा कोई न हमदर्द
वो दुख देते मुझे
मारें मुझको ठोकरें
पर न जानूँ
क्यों न मैं कोई दर्द
महसूस करूँ
यह मुझे है पता
वो कल को फिर ऐसा ही करेंगे
हल्की धूप में
वह लेंगे चाय पीने का मज़ा
पर यह किसी ने न जाना
यह चमकता सूरज
मेरा कभी न बना!
सुप्रीत कौर संधु ( कक्षा : छठी)
अनुवाद : हरदीप कौर संधु
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